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धर्म के आधार पर आतंकवादियों में भेद-भाव का औचित्य

Tafhim_Khan
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फर्रुखाबाद: धर्म के आधार पर जीवन के अन्य क्षेत्रों में तो भेद-भाव की खबरे पहले भी आती रही हैं, परंतु धर्म के आधार पर आतंकवादियों के बीच भी भेद-भाव करने की अनूठी मिसाल पंजाब की अकाली-भाजपा सरकार ने प्रस्तुत कर दी है। मजे की बात तो यह है कि पंजाब के सत्तारुढ मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल अपनेही पूर्ववर्ती बेअंत सिंह के हत्यारों को बचाने के लिये राष्ट्रपति तक से मिलने पहुंच गये। और यह स्थिति तब है जब मुख्यमंत्री के काफिले को बम से उड़ा देने वाले बब्बर खालसा के आतंकी अपने किये पर शर्मिंदा होना तो दूर, दया याचिका दायर करने तक को तैयार नहीं हैं। कसाब की बिरियानी के खर्च पर सिर धुनने वाले व उसकी फांसी के लिये बाहें फाड़ने वाले आज मानवाधिकार की दुहाई देते फिर रहे हैं। हम क्यों भूल जाते हैं कि आतंकी का कोई धर्म नहीं होता, कोई धर्म आतंकवाद की इजाजत नहीं देता व धर्म निरपेक्ष देश का कानून धर्म से ऊपर होता है।

31 अगस्त 1995 को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई थी। जिस समय आत्मघाती हमला हुआ उस समय बेअंत सिंह चंडीगढ़ में पंजाब सचिवालय स्थित उच्च सुरक्षा वाले अपने दफ्तर से निकल रहे थे। इस घटना में 17 अन्य लोग मारे गये थे। इस मामले में चंडीगढ़ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने एक अगस्त 2007 आतंकवादियों जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह को फांसी की सजा सुनाई थी। हवारा ने फांसी की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, जबकि बलवंत सिंह ने गुनाह कबूल करते हुए फांसी के खिलाफ अपील करने से इनकार कर दिया था। बेअंत सिंह के परिवारवालों ने भी बलवंत को माफ करने की बात कही, लेकिन वो अपना रुख बदलने को तैयार नहीं हुआ। चंडीगढ़ की अदालत ने डेथ वारंट इस महीने पटियाला जेल प्राधिकरण को दे दिया था। उनसे 31 मार्च को फांसी की तामील करने को कहा गया था।

बलवंत की फांसी की तारीख करीब आते आते मानों पंजाब में उबाल आ गया। खुद को राष्ट्रवाद का अलमबरदार होने का ढोल पीटने वाली भाजपा के गठबंधन वाली सरकार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल स्वयं आतंकी बलवंत की फांसी की सजा माफ कराने के लिये राष्ट्रपतिभवन तक जा पहुंचे। धार्मिक उंमाद की तपिश पर राजनैतिक रोटिंयां सेकने में परहेज करना कांग्रेस को भी रास नहीं आया, सो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कानूनी रूप से इस आतंकवादी की मदद का बयान दे डाला। विगत 24 घंटे की ताबड़तोड़ राजनैतिक सरगर्मी के बाद आखिर बुधवार देर शाम तक बलवंत की फांसी की सजा स्थगित किये जाने की खबरे आने लगीं।

क्या इस कदम से कशमीर के आतंकवादियों के हौसले बुलंद नहीं होंगे। क्या इससे माओवादियों के दुस्साहस में ज्वार नहीं आयेगा। क्या यह हमारे लोकतांत्रिक व संवैधानिक ढांचे की दुनिया के सामने पोल नहीं खोलेगा। आखिर हम किस किस को जवाब देंगे कि कसाब की बिरयानी के हिसाब में सर खपाने वाले अब मुंह क्यों छिपाते फिर रहे हैं। हम कैसे समझायें कि मुंमबई की तरह ही चंडीगढ में मरने वाले डेढ दर्जन लोग भी इसी देश के नागरिक थे। वह सरकारी ड्यूटी पर भी थे, और उनके खून का रंग भी लाल था।

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