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मोहन भागवत और आसाराम के बयानों ने एक बार फिर इनके व्यववहारिक ज्ञान और प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्हे लगा दिये हैं। दामिनी कांड के बाद पूरे देश में छिड़ी इस बहस में दर्जनों लोगों के बयान आये और चर्चित भी हुए। कुछ पर विपरीत टिप्पीणियां आयीं कुछ पर कटु प्रतिक्रियायें आयीं। परंतु जिस मुद्दे पर पूरे देश का युवा सारी राजनैतिक प्रतिबद्धतांयें तोड़ कर जिस प्रकार एक जुट हुआ है, उस पर मोहन भागवत व आसाराम बापू जैसे लोंगों की टिप्पदणियों ने सचमुच आहत किया है। परंतु यदि गौर से देखें तो इन दोनों के बयानों का अपरोक्ष लाभ सीधे तौर पर कांग्रेस को ही मिला है, जो शुरू से ही मामले को हलके में ले कर टालने की मुद्रा में है।
देश के सबसे बड़े विपक्षी दल भाजपा की बौद्धिक पीठ समझे जाने वाले आरएसएस के मुखिया ने जिस प्रकार ठोस आंकणों की अनदेखी कर इण्डियया और भारत की परिभाषा गढ़ी है वही सचमुच उनके व्ययवहारिक ज्ञान पर प्रश्ना चिन्ह लगाती है। बलात्कार और यौन उत्पीमड़न के जितने मामले शौच को गयी महिलाओं के साथ होते हैं, उतने किसी भी एक अन्यय परिस्थि ति में नहीं होते हैं। खुले में शौच जाने की प्रथा तथाकथित भारत में ही है। ‘‘क्रिमिनिल लॉ जर्नल में प्रकाशित आंकड़ों पर नजर डालें तो हाई कोर्ट में 80 फीसदी और सुप्रीम कोर्ट में 75 फीसदी रेप केस ग्रामीण इलाकों से दर्ज थे. वहीं गैंग रेप के जो मामले हाईकोर्ट (75%) और सुप्रीम कोर्ट (68%) में दर्ज हैं उनमें से अधिकांश मोहन भागवत के ‘भारत’ में से ही हैं. बस मीडिया और लाइमलाइट में ना आने के कारण यह मामले दबा दिए जाते हैं. शहरी क्षेत्रों में बलात्कार के जो आंकड़े सामने आए हैं उनका महिलाओं के पहनावे और संस्कृति से कुछ भी लेना देना नहीं है, क्योंकि यह तो संस्कारों के अभाव में उत्पन्न मानसिक विकृति और मनोविकार का परिणाम है. ऐसा एक बार नहीं कई बार देखा है गया जब ऐसे मानसिक रोगी छोटी-छोटी मासूम बच्चियों और असहाय युवतियों को अपना निशाना बनाते हैं.’’ आधुनिकता या पहनावे को लेकर दिये जा रहे बयानों से केवल बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वालों को दुष्कर्म के लिये कराण ढूंडने में सुविधा मिलती है। मोहन भागवत ने विवाह को कांट्रैक्ट या अनुबंध कह कर भी विवाह जैसे जन्म-जन्मांतर के पवित्र सामजिक बंधन की भारतीय अवधारणा पर ही चोट की है।
अब यह सबकुछ जाने अनजाने हुआ है, या इसके पीछे भी कोई गूढ़ राजनीति है, इसका अंदाजा तो बाद में ही लगेगा। परंतु मोहन भागवत और आसाराम बापू के बयानों का सीधे तौर पर लाभ कांग्रेस को ही मिला है। विदित है कि कांग्रेस शुरू से ही मामले को हलके में लेकर उसे टालने की मुद्रा में नजर आ रही है। परंतु अन्य पार्टियों की उदासीनता भी कुछ कम अपराधिक-सहभागितापूर्ण नहीं है।
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