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क्या हैदराबाद आतंकी हमला भारत की पक्षपात भरी नीति का परिणाम है? यह सवाल ही वास्तव में पक्षपातपूर्ण है। जाहिर है कि यह सवाल उठाने से पहले आप मान लेते हैं कि हैदराबाद में बम धमाकों के पीछे मुस्लिम आतंकी हैं। जबकि ताजा इतिहास इस बात का गवाह है कि सुरक्षा ऐजेंसियों ने जिन आतंकी गतिविधियों में बाकायदा दर्जनों मुस्लिम युवकों को बाकायदा गिरफ्तार कर घटना का खुलासा कर दिया जबकि उन घटनाओं में सम्मिलित आतंकी वास्तव में कुछ दक्षिणपंथी हिंदू संठनों के मोहरे थे। मालेगाँव, अजमेर दरगाह, मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस, नांदेड बम विस्फोट जैसी घटनाओं के घाव अभी भरे भी नहीं हैं। रॉ, एटीएस, एनआईए व सीबीआई जैसी संस्थायें अभी यह तय भी नहीं कर पायी हैं कि आतंकियों का ताल्लुक वास्तव में श्रीनगर से है या इंदौर से। हैदराबाद में प्रवीन तोगड़िया द्वारा हैदराबाद को अयोध्या बना देने की धमकी को भी हमारे बुद्धजीवी नजरअंदाज करते नजर आ रहे हैं।
अगर हम यह मान भी लें कि हैदराबाद में बम धमाके करने वाले वास्तव में मुस्लिम आतंकी संगठनों से जुड़े हुए थे। इसके लिये भड़काऊ भाषण देने के मामले में तोगड़िया की गिरफ्तारी न किये जानेहो या बेअंत सिंह की हत्या करने वाले बेअंत सिंह राजोआना की फांसी पर कोई निर्णय न करना जैसे कारणों को गिनाये जाने के बावजूद मासूम नागरिकों की बेरहम हत्या करने के लिये बम धमाकों का औचित्य नहीं ढ़ूंढा जा सकता। मैं कुछ बुद्धजीवियों के इस तर्क से कतई सहमत नहीं हूं! ओवैसी की गिरफ्तारी और अफजल गुरू की फांसी जैसी तेजी दूसरे मामलों में न दिखाने से उपजी हताशा का मुकाबला करने के लिये अन्य राजनैतिक-लोकतांत्रिक तरीके हो सकते थे।
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